Saturday, 25 July 2015

जरिया बन गई...

वो मेरी कविता तो न बन पाई
पर मेरी इन कविताओं का 
जरिया जरुर बन गई

वो मंजिल जिसकी तलाश थी
वो मंजिल तो न मिल पाई
पर एक नई शुरुआत करने का
जरिया जरुर बन गई

जहाँ से कहानी की शुरुआत हुई
वो खत्म भी  वहीं हो गई
तो कहानी अंत करने का 
जरिया जरुर बन गई

मैंने कोई गलती नहीं की, 
पर गलतफहमी जरुर हुई
इस गलतफहमी को दूर करने का
जरिया जरुर बन गई

थोड़े पल के लिए 
वो मेरे जीवन का एक हिस्सा बन गई
और बखूबी मेरा साथ निभाने का
जरिया जरुर बन गई

अब जो हूँ मैं, मुझसे इसकी 
कल्पना भी न हुई
वो मेरे इस अनुभव और प्रेरणा का
जरिया जरुर बन गई

मेरा ये दौर बहुत लंबा नहीं था
इस छोटे दौर में ही बहुत कुछ सीखा गई
मगर इस छोटे से सफर का
हमसफर जरुर बन गई

*राकेश वर्मा*

No comments:

Post a Comment

Happy to hear from you