Saturday, 25 July 2015

अधूरा रह गया...

मैं अपनी कविता के बिना अधूरा रह गया
मेरी कविताओं के कई सवाल थे
उन सवालों का जवाब अधूरा रह गया

मैं, जो आस अब तक लगाए  बैठा था
वो आस अधूरा रह गया
मेरा सारा प्रयाश अधूरा रह गया

मेरे सारे ख्वाब जो मैंने 
अपनी कविता के लिए देखे थे
वो ख्वाब अधूरा रह गया 

शायद, मेरी कहानी की 
शुरुआत ही अच्छी नहीं हुई
इसलिए अच्छा अंत अधूरा रह गया

मैं अपनी कविता के लिए 
और भी कविताएँ लिखना चाहता था
पर कविता के बिना, कविताओं का दौर अधूरा रह गया

मैं हर बार थोड़े से रह जाता था
इस बार, उस थोड़े में भी अधूरा रह गया
अन्ततः, अपनी कविता के बिना अधूरा रह गया

*राकेश वर्मा*

जरिया बन गई...

वो मेरी कविता तो न बन पाई
पर मेरी इन कविताओं का 
जरिया जरुर बन गई

वो मंजिल जिसकी तलाश थी
वो मंजिल तो न मिल पाई
पर एक नई शुरुआत करने का
जरिया जरुर बन गई

जहाँ से कहानी की शुरुआत हुई
वो खत्म भी  वहीं हो गई
तो कहानी अंत करने का 
जरिया जरुर बन गई

मैंने कोई गलती नहीं की, 
पर गलतफहमी जरुर हुई
इस गलतफहमी को दूर करने का
जरिया जरुर बन गई

थोड़े पल के लिए 
वो मेरे जीवन का एक हिस्सा बन गई
और बखूबी मेरा साथ निभाने का
जरिया जरुर बन गई

अब जो हूँ मैं, मुझसे इसकी 
कल्पना भी न हुई
वो मेरे इस अनुभव और प्रेरणा का
जरिया जरुर बन गई

मेरा ये दौर बहुत लंबा नहीं था
इस छोटे दौर में ही बहुत कुछ सीखा गई
मगर इस छोटे से सफर का
हमसफर जरुर बन गई

*राकेश वर्मा*

जरूरत...

जब नहीं थी
तब जरूरत थी
अब मेरे पास है
तो जरूरत ही नहीं पड़ती

एक दिन फिर अचानक
जरूरत पड़ गई
ढूंढता रह गया 
बहुत ढूंढा 
ढूंढते ढूंढते परेशान हो गया 
पर नहीं मिली
बहुत गुस्सा आया
पर इसका कोई फायदा नहीं था

फिर एक दिन
जब जरूरत नहीं थी,
तो सामने दिख गयी
फिर उस दिन से
उसे अब अपने
आँखों के सामने रखता हूँ
निहारता रहता हूँ
एक पल के लिए भी
आँखों से ओझल नहीं होने देता हूँ

क्योंकि फिर
कभी भी जरूरत 
पड़ सकती है

*राकेश वर्मा*

बिना माँगे ही मिल गया...

मैंने तुम्हारे लिए कोई 
दुआ नहीं माँगी
वो तो मेरे दोस्त ही मेरे लिए 
दुआ कर गये

मैं उदास जरुर हुआ था 
पर किसी से खुशी नहीं माँगी
वो तो मेरे दोस्त ही मेरे लिए 
थोड़ी सी हँसी दे गए

मैंने परिस्थितिओं को झेलने के लिए
किसी की मदद नहीं माँगी
वो तो मेरे दोस्त ही मुझे 
थोड़ी सी हिम्मत दे गए

मैंने तो एक पल के लिए 
तुम्हें पाने की आस ही छोड़ दी
वो तो मेरे दोस्त ही मुझे
थोड़ी सी उम्मीद दे गए

*राकेश वर्मा*

Friday, 24 July 2015

क्या तुम इजाजत दोगी?

मैं सोचता हूँ
फिर से एक बार अतीत में जाऊँ
फिर से वही सारे सवाल दोहराऊँ
तो क्या तुम इजाजत दोगी

अगर नहीं तो क्यों?
अगर हाँ तो क्यों?
चूँकि मेरे सवाल तो वही है
तो, क्या अब भी तुम्हारे जवाब वही होंगे
क्या बिलकुल पहले जैसे ही होंगे?

कुछ तो परिवर्तन आया होगा
कुछ तो तुम्हारे मन को भाया होगा,
तुम्हारा दिल भी इन्सान का ही होगा
पत्थर का थोड़ी किसी ने बनाया होगा

तो क्या तुम इजाजत दोगी
कि फिर से वही सारे सवाल दोहराऊँ
या फिर मैं थोड़ा और इंतजार करूँ
कि तुम एक बार फिर से फैसला ले सको
और बिना मेरे सवाल किये
तुम खुद ही जवाब दे सको

तो क्या तुम इजाजत दोगी 
कि मैं थोड़ा और इंतजार करूँ
और तुम्हें प्यार करूँ

*राकेश वर्मा*

तुम फैसला करो...

ये सच है 
कि ये कविताएँ तुम्हारे लिए लिखता हूँ
क्योंकि ये कविताएँ तुम्हारे प्रति 
मेरे प्यार का इज़हार करती हैं
ये कविता नहीं, बल्कि
तुम्हारे प्रति मेरी भावनाएँ हैं, अनुभूति है
क्योंकि मुझे तुमसे बेहद प्रेम है

पर सच बताऊँ 
कभी कभी मुझे लगता है
कि ये कविताएँ तुम्हारे लिए
एक जाल है
और तुमने खुद को 
बेहतर साबित कर दिखाया
इन कविताओं से 
तुम प्रभावित तो हुई
पर इनका प्रभाव पड़ने नहीं दिया

पर सच्चाई तो यही है
कि ये कविताएँ तुम्हारे लिए 
सिर्फ और सिर्फ मेरा प्यार है

फिर भी
मैं यह तुम पर छोड़ता हूँ
तुम्हीं फैसला करो
ये कविताएँ, तुम्हारे लिए
जाल है या मेरा प्यार?

*राकेश वर्मा*

मुश्किल जरुर है...


तुम्हें भुलाना आसान तो नहीं 
पर मुश्किल जरुर है

ऐसा भी नहीं है कि
मैं तुम्हारे लिए रोऊँगा
पर तुम्हारे बिना हँस पाना
मुश्किल जरुर है

ऐसा भी नहीं है कि
तुम्हारे बिना मर जाऊँगा
पर तुम्हारे बिना जीना
मुश्किल जरुर है

ऐसा भी नहीं है कि
तुम्हारी जगह कोई और नहीं ले सकता
पर तुम्हारे सिवा इस 
दिल में किसी और को जगह दे पाना
मुश्किल जरुर है

*राकेश वर्मा*

मेरा हक...

मैं जानता हूँ 
तुम मुझसे प्यार नहीं करती
पर मैंने भी तुमसे कभी नहीं कहा
कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ
ये तो बस इशारों से बयाँ हुआ था
तो तुम मुझे प्यार करो या ना करो
पर मुझे तो इज़ाजत दे दो एक बार
ताकि मैं कह सकूँ 
कि मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूँ
ये कहने का हक तो मुझसे मत छिनो

मैं जानता हूँ 
तुम मुझे प्यार नहीं करती
फिर भी मैं तुम्हें अपने दिल की
हर एक बात बताता हूँ
तुम भी हर बात तो नहीं
पर कुछ बात मुझसे 
जरुर छिपाती हो
तो तुम मुझे प्यार करो या ना करो
पर मुझे प्यार करने का
मेरा हक तो मुझसे मत छिनो

*राकेश वर्मा*

कोशिश कर रहा हूँ...

मैं कोशिश कर रहा हूँ
खुद को खुद से समझाने की 
और उसको मनाने की

मैं कोशिश कर रहा हूँ
खुद को समझने की 
और उसको भी समझने की

मैं कोशिश कर रहा हूँ
खुद के पास आने की 
और उससे थोड़ा दूर जाने की

मैं कोशिश कर रहा हूँ
खुद की बात बनाने की 
और उसकी बातों को अमल में लाने की

मैं कोशिश कर रहा हूँ
खुद एक नई शुरुआत करने की 
और उसके बताए रास्तों पर चलने की

*राकेश वर्मा*

हकीकत क्या है?

मैं आज भी असमंजस में हूँ
वो मुझसे प्यार करती है या नहीं
तो मैंने उसके जुबाँ से
जानने की कोशिश की

वो सीधे मना न कर सकी
ताकि मुझे दुख न हो 
तो मैंने भी उसे बाध्य नहीं किया बताने को
ताकि उसे भी आहत न हो

जब वो सीधे सीधे मना न कर पाई
जब ढ़ेर सारे बहानों की लाइन लगाई
तो क्या मैं समझ न पाया 
कि उसके दिल में क्या था?
समझ तो मैं पहले ही गया था
पर मैंने एक कोशिश करना चाहा
उसके सारे दिक्कतों का हल बताया
फिर भी वो जवाब न दे पाई
और मेरी कोशिश, कोशिश बनकर रह गई

मैंने तो उसे अपना पूरा दिल ही दे दिया था
उससे तो उसके दिल में बस थोड़ी सी जगह माँगी थी
पर शायद उसका दिल ही छोटा निकला
या हो सकता है उसके दिल में
किसी और ने जगह बना रखी हो
या हो सकता है उसे मुझसे प्यार ही न हो
या हो सकता है मुझे अपने काबिल न समझती हो 
शायद इसीलिए उसके दिल में जगह न बना पाया
ये सब बस मेरी एक कल्पना है
सच क्या है ये तो मैं भी नहीं जानता
इसका जवाब तो अभी उसी के पास है
मेरी कल्पना का हकीकत क्या है?
बस यही जानने की आस है
क्योंकि उसकी यादें अब भी मेरे साथ है

मैं तो बस यही चाहता हूँ
कि वो जहाँ भी रहे, जैसी भी रहे
हँसती रहे, मुस्कुराती रहे
अपने मंजिल तक पहुँचे
अगर मुझे वो रुकावट समझती है
तो नहीं बनना रुकावट उसके लिए
लेकिन बस वो "हाँ" तो कर दे
शायद, उसकी सारी समस्याओं का समाधान बन जाऊँ

हो सकता है, मेरा सोचना गलत हो
पर सही क्या है
ये तो वही जाने
बस! एक बार वो मेरी बात तो माने

*राकेश वर्मा*

उम्मीद न थी...

तुम ना मिली तो क्या हुआ
मैं पहले भी खुश था
और अब भी हूँ

क्योंकि तुमसे तो मुझे
वो खुशियाँ मिली 
जिसकी मुझे उम्मीद न थी

क्योंकि तुमसे तो मुझे 
वो अनुभव मिला
जिसकी मुझे उम्मीद न थी

क्योंकि तुमसे तो मुझे
कुछ सीखने को मिला
जिसकी मुझे उम्मीद न थी

क्योंकि तुमने तो मुझे
हर परिस्थितियों का सामना करना सीखाया
जिसकी मुझे उम्मीद न थी

क्योंकि तुम तो 
मेरी प्रेरणा बन गई
जिसकी मुझे उम्मीद न थी

तुमने तो मुझे वो आशा दी
ताकि मेरे साथ कुछ बेहतर हो
जिस आशा की मुझे उम्मीद न थी

मुझे तो खुदा ने ऐसा दोस्त दिया
जिसकी बिलकुल भी उम्मीद न थी

इसलिए खुदा से बस यही एक दुआ है
कि ये दोस्ती न टूटे
तुम्हारा साथ न छूटे
ये दोस्ती सलामत रहे

*राकेश वर्मा*

कलम खुद ही चल पड़ती है...

मेरी कविता, 
शायद मुझे प्यार नहीं करती
पर वो कविता, 
मेरी कविताओं से बहुत खुश होती है
पर मुझे अब बहुत चिंता होती है
मेरी कविताएँ,
जो आज हँसा सकती है
तो कल रुला भी सकती है
पर क्या करूँ!
मेरे कलम जो खुद ही चल जाती है
रोकना चाहूँ तो भी रुक नहीं पाती है
और मेरी कविता के लिए 
कुछ न कुछ लिख जाती है
आखिर इसे रोकूँ, तो कैसे?
कहीं ऐसा तो नहीं
मेरी कलम मेरी कविता से
मुझसे भी ज्यादा प्यार करती है!

*राकेश वर्मा*

याद करता हूँ...

मैं तुम्हें याद करता हूँ
हर पल याद करता हूँ
हर जगह याद करता हूँ
खुद को तुमसे जोड़ता हूँ
कुछ बातों को तुमसे जोड़ता हूँ
कुछ बीते लम्हों को तुमसे जोड़ता हूँ
फिर खुद को खुद पर छोड़ता हूँ

कभी कभी तुम्हारी यादों की
गहराईयों में खो जाता हूँ
एक कल्पना की दुनिया में
तुम्हारा हो जाता हूँ
पर उस कल्पना से बाहर
हकीकत में जब आता हूँ
तो खुद को खुद के पास ही पाता हूँ

*राकेश वर्मा*

बेचैन कर जाती है...


मैं बार-बार अपनी 
          कविता की वजह से,
विचलित हो उठता हूँ
          कभी सोचता हूँ 
कविता को मना लूँ
          तो कभी सोचता हूँ
खुद को मना लूँ
          कई बार मैं 
खुद को ही मना लेता हूँ
          पर मेरा दिल 
मानता ही नहीं है
          और ये मेरा दिल
मुझे बेचैन कर जाता है

इतना ही नहीं,
           एक कविता है,
जो बिल्कुल मेरी 
           कविता जैसी दिखती है
मेरे नजरों के
           सामने आती है
मेरी कविता की यादें
           ताजा कर जाती है
पर वो मेरी 
           कविता नहीं है
वो मेरी एक कल्पना है
           और मेरी ये कल्पना
मुझे बेचैन कर जाती है

*राकेश वर्मा*

आखिर और क्या करता!

हमने खुद को तुम पर छोड़ दिया
और तुमको तुम्हारी किस्मत पर

हमारी मंजिल तय नहीं थी
तो हमने तुम्हें अपनी मंजिल बनाई
फिर हमने रुख तुम्हारी तरफ मोड़ लिया
और तुमको तुम्हारी किस्मत पर छोड़ दिया

दोस्ती से एक पल के लिए आगे निकले
लेकिन तुम्हारे कहने पर
फिर से दोस्ती का नाता जोड़ लिया
और तुमको तुम्हारी किस्मत पर छोड़ दिया

हमने तुम्हारे लिए कुछ सपने संजोए थे
जब हकीकत में बदलना असम्भव लगा
तो फिर हमने खुद उन्हें तोड़ दिया
और तुमको तुम्हारी किस्मत पर छोड़ दिया

तुम्हें समझाने की पूरी कोशिश की हमने
पर तुम शायद मेरी बात समझ न पायी
तो फिर हमने तुम्हें समझाना छोड़ दिया
और तुमको तुम्हारी किस्मत पर छोड़ दिया

हमने तुमसे कुछ सवाल किये 
पर तुमने खुद को उन सवालों में उलझा दिया
तो हमने खुद ही अपना सवाल वापस ले लिया
और तुमको तुम्हारी किस्मत पर छोड़ दिया

हमने तुम्हारे लिए अपने दिल में जगह बनाई 
वो जगह तुम्हारे बगैर अब भी खाली ही है 
तुम्हारी आस में हमने उसे खाली ही छोड़ दिया
और तुमको तुम्हारी किस्मत पर छोड़ दिया

अब तो ये कविताएँ ही 
जीने का एकमात्र सहारा हैं
तो खुद को इन कविताओं के सहारे छोड़ दिया
और तुमको तुम्हारी किस्मत पर छोड़ दिया

पर तुम्हारी यादों ने हमारा साथ न छोड़ा
तो हमने तुम्हारी किस्मत को
अपनी किस्मत से जोड़ लिया
और किस्मत को किस्मत पर ही छोड़ दिया

*राकेश वर्मा*

एक मायूसी सी छा गई...

कितना खुश था मैं उस दिन
जब मुझे लगा कि 
शायद उसका जवाब "हाँ" ही होगा
उस दिन, 
वो खुशी मेरी आवाज में थी
वो खुशी मेरी बातों में थी
वो खुशी मेरे चेहरे पर थी
वो खुशी सभी ने देखी
पर उस खुशी की वजह
कोई भी न जान पाया
न ही मैंने किसी को जानने दी
क्योंकि मेरा अनुमान 
गलत भी हो सकता था

और वही हुआ
मेरी आशा निराशा में बदल गई
वो खुशी, अगले ही पल
अचानक से गायब हो गई
मैं मायूस हो गया, उदास हो गया
पर ये मायूसी किसी न देखी
क्योंकि ये मायूसी
सिर्फ और सिर्फ 
मेरे दिल के अंदर थी
न ही ये मेरे आवाज में थी,
न ही मेरे बातों में थी,
न ही मेरे चेहरे पर थी
क्योंकि इस मायूसी को
मैंने दिल से बाहर आने ही न दी

बावजूद इन सबके
एक चीज, जो अब भी 
मेरे दिल में है
वो है, उसकी आवाज
उसकी बातें, उसका चेहरा
उसकी यादें
और मेरा दिल 
जो अब भी उम्मीद लिए हुए है
कि शायद कोई अजूबा हो जाए
और वो मान जाए

*राकेश वर्मा*

वक्त की साजिश...

कभी उनसे मिलने के लिए
कई लम्हा इंतज़ार किया करते थे
पर आज वो खुद ही 
हमारे पास चले आए
तो शायद ये वक्त की ही साजिश थी

कभी उनसे बात करने के लिए
कितना तरसता था, बेकरारी थी
पर आज वो खुद ही
हमसे बात करने लगे
तो शायद ये वक्त की ही साजिश थी

कभी अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए
सोचा करते थे कि उन्हें कैसे बताएं
पर आज वो खुद ही 
हमारे दिल की बात समझ गए
तो शायद ये वक्त की ही साजिश थी

पर आज भी दिल के अरमां
दिल में ही है
इंतजार कर रहा हूँ
अगर किसी दिन ये अरमां पूरे हो जाएँ
तो शायद ये वक्त की ही साजिश होगी

*राकेश वर्मा*

बेहतर कौन ?

क्यों न मैं, तुम्हें खुद से बेहतर बताऊँ
और खुद ही तुमसे दूर हो जाऊँ
जिससे तुम्हें अपने फैसले पर अफसोस न हो
क्योंकि मेरी खुशी तो तुम्हारी खुशी में ही है

इसलिए मैं आईने के सामने खड़ा हो जाता
और खुद को अहसास दिलाता
खुद को तुमसे कम,
तुमको खुद से बेहतर बताता

निर्णय लेना तो बहुत मुश्किल होता
कि बेहतर कौन?
पर क्या करता!
खुद को तुमसे दूर जो करना था

अगर खुद को बेहतर बताता 
तो खुद पर घमंड हो जाता 
ये घमंड एक दिन खुद ही टूट जाता
या इसे तोड़ने को मैं मजबूर हो जाता

इसलिए हर बार तुम्हें जीताता 
और खुद हार जाता
हर बार तुम्हीं को बेहतर बताता
और खुद पीछे हट जाता

एक फैसला तुम पर भी छोड़ता हूँ
क्या ऐसा करके मैंने सही किया?

*राकेश वर्मा*

फिर से तैयार हो जाता हूँ

तुम मना करती हो
मैं हर बार मान जाता हूँ
थोड़ा उदास होता हूँ
पर तुम्हारे मना करने का
अंदाज ही कुछ ऐसा होता है
कि तुम्हें मनाने को 
फिर से तैयार हो जाता हूँ

कभी कभी लगता है
कि प्यार तो करती हो
पर शायद कहने से डरती हो
अगर तुम सामने होती 
तो तुम्हारी नजरों से बयाँ हो जाता
इसलिए तुम्हारे सामने आने को
बेकरार हो जाता हूँ

तुम्हारी बातों से थोड़ा 
समझ तो आता है
फिर भी न जाने क्यों,
थोड़ा सा रह जाता है
तो पूरा-पूरा तुम्हें समझने को
फिर से तैयार हो जाता हूँ

*राकेश वर्मा*

Friday, 26 June 2015

मुझे तलाश है...

आज मेरी नाव किनारे तो लग गई
पर वो किनारा ना मिला 
जिसकी मुझे तलाश थी

आज मैं खुश तो हूँ
पर वो खुशी ना मिली
जिसकी मुझे तलाश थी

मंजिल तो मिली
पर ये मंजिल वो नहीं
जिसकी मुझे तलाश थी

साथ तो है उसका
पर वैसी नहीं
जैसी मुझे तलाश थी

जवाब तो है उसका
पर ये जवाब वो नहीं
जिसकी मुझे तलाश थी

उसके दिल में तो हूँ मैं
पर ये, वो जगह नहीं
जिसकी मुझे तलाश थी

उसकी खुशी में मेरी खुशी है
इसलिए उसकी खुशियों की तलाश है
एक दिन वो मुझे चाहे
ऐसे उसके जवाब की 
आज भी तलाश है

अब भी एक आस है
काश! वो दिन आये
जिसकी मुझे तलाश है

*राकेश वर्मा*

वो इनकार करती है...

अब मुझे वो कवि तो मानती है
पर मेरी कविता बनने से इनकार करती है

अब तो वो मुझे अच्छे से जानती है
फिर भी मुझे अपना मानने से, 
वो इनकार करती है

मैं थोड़ी सी भूल कर बैठा
उसका साथ पाने के लिए,
दोस्ती से थोड़ा आगे निकल गया
उसकी दोस्ती को प्यार समझ बैठा,
पर वो अब भी मुझे दोस्त मानती है
पर दोस्ती से आगे जाने से, 
वो इनकार करती है

मंजिल को पाना आसान नहीं होता
संघर्ष तो करना ही पड़ता है,
कुछ बंदिशें होती है 
तो कुछ रुकावटें भी आती हैं,
पर रुकावटों का सामना करने से,
वो इनकार करती है

वक्त के साथ कुछ परिवर्तन आता है,
परिस्थितियों में बदलाव आता है,
कुछ चीजें पक्ष में आती हैं, तो कुछ नहीं भी
पर परिस्थितिओं के बदलने से,
वो इनकार करती है

मुझे सकारात्मक सोच रखने के लिए तो कहती है
पर खुद सकारात्मक सोच रखने से,
वो इनकार करती है
मैं तो उसके लिए इंतजार करने को तैयार हूँ
पर न जाने क्यों! इंतजार कराने से,
वो इनकार करती है

उसके पास मुझे अपनाने का कारण तो है,
पर कुछ और वजहों से 
मुझे अपनाने से, वो इनकार करती है

हर कहानी की अंत अच्छी ही हो, 
कोई जरुरी नहीं
पर एक अच्छी शुरुआत तो कर सकते हैं ना!
पर पता नहीं क्यों!
एक अच्छी शुरुआत करने से,
वो इनकार करती है

मैं कवि तो उसी के लिए हूँ 
और उसी की वजह से हूँ
अब मैं खुद को कवि मानने से इनकार करता हूँ
क्योंकि वो मेरी कविता बनने से इनकार करती है

*राकेश वर्मा*

Thursday, 25 June 2015

अभी बाकी है ......

आखिर मेरी तलाश पूरी हुई
पर आस पूरा होना, अभी बाकी है

आखिर मुझे जो कहना था, कह गया

पर अब उसका कहना, अभी बाकी है

उसकी बातों का जादू तो चल गया मुझ पर

पर मेरी बातों का जादू चलना, अभी बाकी है

मेरी धड़कने तो जैसे थम सी गई है

पर उसकी धड़कनों का बढ़ना, अभी बाकी है

काफी कोशिशों के बावजूद बच ना सका इस मोह से

शायद उसका भी इससे बच पाना, अभी बाकी है

मेरे दिल में जगह बनाने में तो वो कामयाब हो गई

पर उसके दिल में जगह बनाना, अभी बाकी है

मेरे ख्यालों में तो वो हर पल आती है

पर उसके ख्यालों में मेरा आना, अभी बाकी है

मुझे जितना बेचैन,बेकरार होना था, हो चुका

पर उसका बेचैन होना, अभी बाकी है

मैं तो अपने धैर्य की परीक्षा दे चुका

पर उसके धैर्य की परीक्षा, अभी बाकी है

मुझे जितना इंतजार करना था, कर चुका

पर उसके जवाब का इंतजार, अभी बाकी है

शायद, उसका हाँ कह पाना अभी मुश्किल है 

इसलिए थोड़ा और इंतजार करना, अभी बाकी है

मुझे जितना तन्हा रहना था, रह चुका

पर अब उसका साथ पाना, अभी बाकी है

मुझे जितना दूर रहना था, रह लिया 

पर अब उसके पास जाना, अभी बाकी है

मेरी नाव तो अभी भी मँझधार में है

उसका किनारे लगना, अभी बाकी है

मुझे उससे बेहद प्रेम है, पर वो कितना करती है

ये पता लगना, अभी बाकी है

परिस्थितियाँ कभी कभी अनुकूल नहीं होती

उनको अनुकूल बनाना, अभी बाकी है

मंजिल को पाने में रुकावटें तो आती हैं

पर उससे पीछे हटने के बजाय, सामना करना, अभी बाकी है

आखिर वो कब और कैसे समझेगी

या उसका और परीक्षा लेना अभी बाकी है,

उसे पाने की तलाश तो पूरी हुई
पर आस पूरा होना, अभी बाकी है 

*राकेश वर्मा*

अगर मेरी किस्मत अच्छी होगी...

तुम्हारे लिए ना मन्दिर, ना मस्जिद जाऊँगा
ना प्रार्थना करूंगा, ना दुआ माँगूंगा
ऐसा होगा, अगर मेरी किस्मत अच्छी होगी

तुम्हारे लिए ना रोया हूँ, ना तुम्हें रुलाऊँगा
क्योंकि तुमको अभी, ना खोया हूँ, ना खोऊंगा
ऐसा होगा, अगर मेरी किस्मत अच्छी होगी

मैं खुश हूँ, तुम्हें भी खुश रखना चाहूँगा
क्योंकि तुम्हें खुश देख, मैं भी खुश रह पाऊँगा 
ऐसा होगा, अगर मेरी किस्मत अच्छी होगी

तुम्हारे ख्यालों में जी रहा हूँ, और जिन्दा रहना चाहूँगा
ऐसा तो तभी होगा, जब मैं तुम्हारा साथ पाऊँगा
ऐसा होगा, अगर मेरी किस्मत अच्छी होगी

*राकेश वर्मा*

Wednesday, 20 May 2015

चलते जा रहे हैं...

ना मंजिल, ना ठिकाना
पता नहीं कहाँ है जाना
बस चलते जा रहे हैं, चलते जा रहे हैं
चलते जा रहे हैं

कौन अपना, कौन बेगाना 
ना जानने की कोशिश की, ना जाना
इस मोह से दूर, बस चलते जा रहे हैं
चलते जा रहे हैं

जो है, उसे नहीं है खोना
कुछ था, और, कुछ है पाना
इसी उम्मीद में, चलते जा रहे हैं
चलते जा रहे हैं

बीते हुए लम्हों का, बार बार सताना
उन यादों से दूर, मुश्किल है निकल पाना
फिर भी इस कोशिश में, बस चलते जा रहे हैं 
चलते जा रहे हैं

रोते को हँसाना, रूठे को मनाना
बिछड़े हुए को अपनों से मिलाना
दिल से दुआ करते हुए, चलते जा रहे हैं
चलते जा रहे हैं

सपने देखना और सपने दिखाना
फिर सपनों को हक़ीकत बनाना
इसी प्रयास में, बस चलते जा रहे हैं
चलते जा रहे हैं

जिसे दिल से चाहें, उसे अपनाना
प्रेम जताने के लिए, हिम्मत जुटाना
ये हिम्मत पाने के लिए, चलते जा रहे हैं
चलते जा रहे हैं

सच को सच, झूठ को झूठ ठहराना
सबको हक और न्याय दिलाना
हर मुश्किल को आसान बनाने के लिए
बस चलते जा रहे हैं, चलते जा रहे हैं

ना मंजिल, ना ठिकाना
पता नहीं कहाँ है जाना
बस चलते जा रहे हैं, चलते जा रहे हैं
चलते जा रहे हैं...

                       *राकेश वर्मा*

Monday, 18 May 2015

अगर तुम हो तो

यदि तुम ऐसा सोचती हो
कि मैं कवि हूँ
तो फिर तुम मेरी कविता हो,
ये जो कविता की इन पंक्तियों को लिख रहा हूँ
इनकी वजह भी तुम ही हो,
तुम तो मेरे ख्यालों में रहती हो
शायद यही वजह है कि
कलम तो खुद-ब-खुद चल पड़ती है,
क्योंकि इन ख्यालों की वजह भी तुम ही हो,
इसका मतलब
तुम नहीं, तो ये ख्याल नहीं
ख्याल नहीं, तो ये पंक्तियाँ नहीं
और ये पंक्तियाँ नहीं
तो फिर कविता नहीं
कविता नहीं, तो कवि नहीं
यानी तुम नहीं
तो मैं नहीं...
                                                     
                                  *राकेश वर्मा*

जब लफ्ज़ ही काफ़ी हों


मैं थोड़े से रह जाता हूँ





ऐसा क्यों


मेरे बचपन के दिन